चित्तौड़गढ़ दुर्ग के प्रमुख मन्दिर –Main temples of Chittorgarh fort
मीरांमन्दिर-
इसमें मीरां की प्रतिमा के स्थान पर केवल एक तस्वीर है, इसके सामने रैदास की छतरी है।
समिद्धेश्वर/ मोकल जी का मन्दिर—
निर्माण मालवा के राजा भोज ने तथा पुनर्निर्माण मोकल ने करवाया।
कालिका माता मन्दिर—मूलत: सूर्य मन्दिर, 7वीं सदी।
कालिका माता मन्दिर—मूलत: सूर्य मन्दिर, 7वीं सदी।
कुंभश्याममन्दिर—
निर्माण-कुम्भा, इसमें विष्णु के वराह अवतार की प्रतिमा है।
तुलजाभवानी—
निर्माण बनवीर ने अपने तुलादान के धन से करवाया। यह शिवाजी की आराध्य देवी थी।
शृंगारचंवरी—
शृंगारचंवरी—
यहाँ कुम्भा की पुत्री रमाबाई की चंवरी बनी हुई है। राजपूत व जैन स्थापत्य कला का नमूना।
सतबीसी जैन मंदिर—27 छोटे-छोटे मन्दिर
सतबीसी जैन मंदिर—27 छोटे-छोटे मन्दिर
विजय स्तम्भ →
इसका निर्माण कुम्भा ने महमूद खिलजी के खिलाफ 1437 ई. में सांरगपुर विजय के उपलक्ष में महान वास्तुशिल्पी मंडन के मार्गदर्शन में सन् 1441 से 1449 के मध्यग करवाया।
यह डमरू के आकार है।
विजय स्तम्भ के उपनाम—हिन्दू मूर्तिकला का विश्वकोष, मूर्तियों का अजायबघर, विक्ट्री टॉवर।
इसका आधार 30 फीट, ऊँचाई-122 फीट, मंजिले-9, 157 सीढ़ियां है।
तीसरी मंजिल पर 9 बार ‘अल्लाह’ शब्द अरबी भाषा में लिखा है।
विजय स्तम्भ के शिल्पकार-जैता व उसके पुत्र नापा, पूँजा, पोमा।
विजय स्तम्भ, राजस्थान की प्रथम इमारत जिस पर 15-08-1949 को डाकटिकट (1 रू. का) जारी हुई।
विजय स्तम्भ के शिल्पकार-जैता व उसके पुत्र नापा, पूँजा, पोमा।
विजय स्तम्भ, राजस्थान की प्रथम इमारत जिस पर 15-08-1949 को डाकटिकट (1 रू. का) जारी हुई।
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड व राजस्थान पुलिस का प्रतीक।
कीर्ति स्तम्भ →
इस स्मारक का निर्माण बारहवीं शताब्दी में दिगम्बर सम्प्रदाय के बघेरवाल महाजन सानाय के पुत्र जीजा ने करवाया।
यह 75 फीट ऊँचा, 7 मंजिला स्मामरक है। इसकी प्रशस्ति लिखने का कार्य अत्रिभट्ट व इसके पुत्र महेश भट्ट ने किया।
पद्मिनी महल →
सूर्य कुण्ड के दक्षिण में तालाब के किनारे रानी पद्मिनी के महल बने ये हैं।
एक छोटा महल तालाब के बीच में बना है। पद्मिनी महल के कमरे में एक बड़ा कांच लगा है जिसमें पानी के बीच वाले महल में खड़े व्यक्ति का प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखाई देता है।